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Anand
अश्वगंधा, चिया, अकरकरा, सफ़ेद मूसली, इसबगोल, अगेती सब्जिया आपको बहुत अच्छा लाभ दे सकती है।
Hari
एक आकलन के मुताबिक, देश में हर्बल उत्पादों का बाजार करीब 50,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें सालाना 15 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही है. जड़ी-बूटी और सुगंधित पौधों के लिए प्रति एकड़ बुआई का रकबा अभी भी इसके मुकाबले काफी कम है. हालांकि यह सालाना 10 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल 1,058.1 लाख हेक्टेयर में फसलों की खेती होती है. इनमें सिर्फ 6.34 लाख हेक्टेयर में जड़ी-बूटी और सुगंधित पौधे लगाए जाते हैं.
अतीश जड़ी-बूटी को उगानेवाले एक किसान को आसानी से 2.5 से 3 लाख रुपये प्रति एकड़ की आमदनी हो जाती है. अतीश का ज्यादातर इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं में होता है. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाके में किसान इसकी खेती कर रहे हैं. लैवेंडर की खेती करने वाले किसानों को आसानी से 1.2-1.5 लाख रुपये प्रति एकड़ मिल जाते हैं. लैवेंडर से तेल निकाला जाता है. इनसे कई तरह के सुंगधित उत्पाद बनाए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में सांगला गांव के एक किसान विजय करन का कहना है कि वह अतीश, रतनजोत और कारू से प्रति एकड़ सालाना डेढ़ लाख से 3 लाख रुपये तक की कमाई कर लेते हैं. जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के खेल्लानी गांव में रहनेवाले भारत भूषण ने बताया कि इसी कमाई के चलते उन्होंने मक्के की खेती छोड़कर लैवेंडर की खेती शुरू कर दी. भूषण ने 2 एकड़ से इसकी शुरुआत की थी. उनका कहना है कि नवंबर तक वह और 10 एकड़ में इसकी बुआई करेंगे. उन्होंने बताया, ‘मैंने पहली बार 2000 में इसकी बुआई की थी. इस पर मिलने वाला रिटर्न मक्के से मिलने वाले रिटर्न से चार गुना है.